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लेखनी प्रतियोगिता -29-Sep-2022आध्यातमिक जीवन



   

                   शीर्षक:- आध्यात्मिक जीवन


             आदिकाल से आध्यात्मिकता हमारी संस्कृति का एक हिह्सा रही है। लेकिन आज की युवा पीढी़  को इससे एलर्जी महसूस होती है। आजकल के लोग आध्यात्मिकता का मतलब गलत निकालते है  वह समझते है कि इसका मतलव स्वयं को  तकलीफ देना है।

        आजकल के लोग सोचते है कि आध्यात्मिकता का मतलव है कि सड़क किनारे बैठकर भीख माँगना।वह यह समझते है जो  ब्यक्ति इसे अपनाता है वह स्वयं को कष्ट देता है और जीवन का असली आनन्द नही ले सकता है इसीलिए वह इससे दूर रहते हैं।

     जबकि एक आध्यात्मिक पुरूष अपनी शान्ति प्रेम और खुशी स्वयं कमाता है। उसे केवल भोजन के लिए दूसरौ की तरफ ताकना पड़ता है।

     मेरा जन्म हुआ है मुझपर अब बुढा़पा आर रहा है अथवा अब मेरी मौत निश्चित है यह सभी बातै हमारे भोतिक शरीर पर ही अपना असर दिखाती हैं ।इन सब बातौ का असर हमारे आध्यात्मिक शरीर पर तनिक भी  नहीं होता है।

       आध्यातमिक शरीर के लिए जन्म लेना बुढा़पा आना अथवा मौत का आना यह सब एक प्राकृतिक  क्रियायै है जो पूरे विश्व के लिए निश्चित है।

  जिस ब्यक्ति  को आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होजाती है उसे समझो ईश्वरीय शक्ति प्राप्त होगयी ।शास्त्रौ मे उल्लेख है कि अहं ब्रह्मास्मि अर्थात मै ब्रह्मा हूँ।जीवन में ब्हाम बोध होजाना सबसे बडी़ भक्ति होती है।


        हमारा आध्यात्मिक जी़वन ईश्वरीय शक्ति से भरा हुआ होता है ।यह एक नाव के समान होता है जो हिलती डुलती है परन्तु डूबती नहीं है। हमारे इस जीवन रूपी नाव की पतवार ऊपर वाले  ईश्वर के हाथ में होती है ।वह ईश्वर हमारी नाव को डूवने से बचाता है।

            हम जिन बस्तुऔ का उपयोग करते है वह हमें अपने कर्म फल के अनुसार ही मिलती है   जब ईश्वर को यह महसूस हो जायेगा कि अब हमारी उपयोगिता समाप्त होगयी है वह हमें उसी समय इस जीवन से मुक्त करके  अपने पास बुला लेते हैं। उनकी मर्जी के बिना हम यहाँ एक पल भी नहीं ठहर सकते हैं।

       जब तक हम सभी ईश्वर के अनुसार  कर्म करते रहते है तब तक हमारा जीवन चलता रहता है।आध्यात्मिक होने का अर्थ है कि आप अपने आप को पहचानते है कि मैं स्वयं एक  आनन्द का स्रोत हूँ। आध्यात्मिकता के लिए हमे मन्दिर मस्जिद या गुरुद्वारे में जाने की आवश्यकता नही है। यह केवल अपने अन्दर से ही घटित होती है।

     यदि आप एक काम  को पूरा करने के लिए पूरी तन्मयता से उसमे गोता लगाते है तो आध्यात्मिकता की यह पहली सीढी़ होती है।

        एक बार किसी ने एक संत से प्रश्न किया कि एक आध्यात्मिक व संसारी पुरुष में क्या अंतर होता है तब उन्हौने उत्तर दिया कि एक संसारी पुरुष  केवल अपना पेट भर सकता है उसे शान्ति प्रेम  व खुशी के लिए दूसरौ पर आश्रित रहना पड़ता है जबकि आध्यात्मिक पुरुष इस्का उल्टा होता है उसे शिन्ति प्रेम व शान्ति स्वयं से मिलती है भोजन के लिए किसी दूसरे पर आश्रित रहना पड़ता है।


आज की दैनिक  प्रतियोगिता हेतु लेख।

नरेश शर्मा " पचौरी "


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7 Comments

Abhinav ji

30-Sep-2022 08:00 AM

Nice

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Raziya bano

29-Sep-2022 08:17 PM

Bahut khub

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Mohammed urooj khan

29-Sep-2022 07:15 PM

सुन्दर लेख 👌👌👌

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